मानवके व्यवहार दानवके हथकंडे
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शब्दोको शब्दोंसे मिलानेसे मिलते है मंजरके अर्थ
मंजर शिखरकी टॉच जो गहरे सागरमें डुबोये मर्म
बुद्धिजीवियोका है शस्त्र जो शाश्त्रोसे बचाये धर्म
गहनताकी खाईमें डूबे समजाये शिखरका कर्म
सनातन वो ही बिंदु है जो गागरमें समाये सागर
जीव का दिल दुखाये बिना असुरोंको मारन हार
सनातन ही रख सकता है एक म्यानमे दो तलवार
जिव है एक पर शाश्त्र और शस्त्र दोनोंको रखनार
युगोसे चली रही मानव दानवोकि जुगल बंधी व्यवहारे
न मानव थके है अपने कर्मसे न दानव थके हथकंड़ोसे
===प्रहलादभाई प्रजापति ,,,२२/१२/२०२४
@praheladprajapati4411
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