प्रत्याघात के आघात यहाँ भुगतना ही होगा
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खोंग्रेसका गद्दारी व् देश द्रोहीकी राजनीतिसे सत्ता सम्पती खेल खुल गया है
डकैत लुटेरे आक्रांता कभी राज गरानोका हिस्सा न होनेका खेल खुल गया है
कौवे चले थे हंस की चाल मछली देख तालाबमें शिकारिका भेद खुल गया है
लुटेरे थे लूटनेको ही आये थे सोनेकी चिड़िया रेगिस्तानका चौला खुल गया है
किसीके दरवाजे पे ताला न देख देशमे मीरजाफर व् जयचन्द सब घुस गए है
ईमान निति नियति दया धर्म सत्य अहिंसाका घर नर्कमें तब्दील कर दिया है
वंश वादी मारीच रावण मुगलिया लहेरु कोंग्रेसी वामी कामी नक्षली इस्लामी है
रघुवंशी निति रीती वैदिक ऋषि परम्पराए सखावत सनातनकी अभडाई गई है
यादवास्थलीकी जमात साधू संतके श्रापका मार जेल रही है इसका प्रमाण दे रही है
बचपनी निस्वार्थ सुख छोड़ जर जोरु जुल्मी स्वार्थी जवानीकी गठरी बुढ़ापा ढो रहा है
===प्रहलादभाई प्रजापति ,,,,,,,९ / ४ / २०२३
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